आईएससी हिंदी गद्य संकलन संस्मरणात्मक रेखाचित्र भक्तिन ( लेखिका महादेवी वर्मा )
'भक्तिन' पाठ परिचय -- भक्तिन महादेवी वर्मा का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है | यह रेखाचित्र उनकी 'स्मृति की रेखाएं' पुस्तक में संकलित है | रेखाचित्र में महादेवी जी ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान से परिचित कराया है, साथ ही साथ भक्तिन के व्यक्तित्व से भी परिचित कराया है | भक्तिन आरंभ से ही संघर्षशील, स्वाभिमानी एवं कर्मठ महिला थी | भक्तिन अपने कर्तव्य के प्रति जितनी हठी थी, उससे भी कहीं अधिक उसका दुर्भाग्य हठी था | जीवन के प्रत्येक परिच्छेद में भक्तिन को दुख ही दुख प्राप्त हुआ | बाल्यावस्था में ही माता का निधन हो जाना, विमाता के द्वारा 5 वर्ष की उम्र में विवाह संपन्न करा देना और नौ वर्ष की होते-होते उसे ससुराल के लिए विदा कर देना, उसके बाद उसके पिता का निधन होना और ससुराल में उसके साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जाना | संयुक्त परिवार से अलग होकर वह अपनी गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर लाती है लेकिन दुर्भाग्य साथ नहीं छोड़ता है | बडी बेटी का विवाह संपन्न करके दो बेटियों की जिम्मेदारी छोड़कर पति का स्वर्गवासी हो जाना. | घर की जिम्मेदारी उसे कंधों पर आना लेकिन फिर भी वह हार नहीं मानती है और अपना कर्तव्य निभाती है पति के निधन के पश्चात एक दिन अचानक उसके दामाद का भी निधन हो जाता है | जेठ और जिठौतो की नजर उसकी सम्पति पर थी, अतः एक तीतरबाज जबरदस्ती गले पड़ जाता है और पंचायत भक्तिन और उसकी बेटी के खिलाफ फैसला सुनाकर उसकी विधवा बेटी का विवाह तीतरबाज के साथ सम्पन्न करा देती है | उसके बाद पूरे घर का सत्यानाश हो जाता है ! खेत खलियान सब कुछ चौपट हो जाते हैं, लगान देना मुश्किल हो जाता है और एक दिन जमीदार भक्तिन को बुलाकर दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखता है,जिसे वह स्वाभिमानी महिला सहन नहीं कर पाती है और कमाई के विचार से शहर पहुंच जाती है | इस प्रकार वह जीवन भर संघर्ष करती रही I छल छद्म भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती रही और स्वाभिमान की रक्षा के लिए वह महादेवी वर्मा के यहां सेवक धर्म में पहुंच जाती है | सेवक धर्म में उसके जीवन का चौथा परिच्छेद शुरू होता है | भक्तिन संकल्प,अनूठी सोच और अपनत्व भाव के कारण वह लेखिका के व्यक्तित्व का जरूरी अंश बन गई, जिसे लेखिका खोना नहीं चाहती थी | दोनों को एक- दूसरे से घनिष्ठ लगाव हो गया था | भक्तिन' पाठ का सार भक्तिन संस्मरण को भक्तिन के जीवन के चार परिच्छेद के आधार पर पढ़ना अधिक सरल और सुविधाजनक होगा I जीवन का प्रथम परिच्छेद-- भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था I वह झूँसी नामक ग्राम के एक गोपालक की पुत्री थी I माता का बचपन में ही निधन हो गया था और विमाता ने 5 वर्ष की उम्र में विवाह संपन्न कराकर 9 वर्ष की उम्र में उसे ससुराल भेज दिया था I उसके पिता उसे अथाह प्रेम करते थे, लेकिन ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क सौतेली माता ने उसके पिता के मरने का समाचार तक उसके पास नहीं भेजा I घर में कोहराम न हो इसलिए सास ने बड़ी समझदारी से काम लिया और उसे पहना ओढाकर उसके पीहर भेज दिया, जब अपने घर पहुंची तो वहाँ पिता का कोई चिह्न शेष नहीं था और विमाता का व्यवहार भी शिष्टाचार रहित था I दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह बिना पानी पिए अपने ससुराल लौट आई और आकर के सारा क्रोध अपनी सास और पति पर निकाला I इस प्रकार पहले परिच्छेद में उसके पिता का निधन होना उसके लिए दुख की बात थी .| जीवन का दूसरा परिच्छेद -- दूसरे परिच्छेद में दुख ही अधिक है I उसने पहली कन्या के समान जब दो कन्याओं को और जन्म दिया तो वह घर में सबसे निचले स्थान पर पहुंच गई I उसकी जेठानिया और सास दिन भर मचिया पर विराजमान रहती और आदेश देती रहती और उनके काले कलूटी लड़के दिनभर आवारागर्दी करते फिरते I लक्ष्मी ने पुत्रों को जन्म न देकर लीक से हटकर कार्य किया तो उसे उसका दंड मिलना आवश्यक था और इसी कारण उसे दिन भर घर का काम , खेत का खलिहान का काम करना पड़ता | सारा काम करने के बाद भी उसके और उसकी पुत्रियों के साथ भेदभाव पूर्ण व्यवहार किया जाता | जिठानियों के लड़के दूध और मक्खन खाते जबकि लक्ष्मी की लड़कियों को गुड़ की डली के साथ चने बाजरे की घुघरी चबानी पड़ती | लक्ष्मी के परिश्रमी, तेजस्विनी और सच्ची होने के कारण उसका पति उसे बहुत चाहता था और उस प्रेम के बल पर लक्ष्मी ने अपने परिवार को संयुक्त परिवार से अलग कर लिया और उसके बाद दोनों पति पत्नी ने दिनभर खेतों में काम करते, निरंतर प्रयास से उन्होंने अपने खेतों को सोना बना लिया | लक्ष्मी ने अपनी बड़ी लड़की का विवाह भी संपन्न करा दिया लेकिन विवाह संपन्न कराने के कुछ दिन उपरांत उसके पति का निधन हो जाता है | लक्ष्मी पर पूरी गृहस्थी की जिम्मेदारी आ जाती है | जेठ और जिठौतो की नजर लक्ष्मी खेतों पर थी I वे प्रयास करे थे किसी न किसी तरह लक्ष्मी दूसरा विवाह कर ले तो सारी संपत्ति उनको प्राप्त हो जाए, लेकिन लक्ष्मी भी उनके इरादों से वाकिफ थी और उसने भी साफ- साफ कह दिया कि वह कही विवाह नहीं करेगी और अपने संकल्प को और मजबूती देने के लिए उसने अपने सिर को मुंडवा लिया और कंठी माला धारण कर ली | दोनों छोटी बेटियों का विवाह संपन्न करने के बाद घर को संभालने के लिए बड़ी बेटी और दामाद को घर बुला लिया | दामाद को घर जमाई बना लिया |
जीवन का तीसरा परिच्छेद शुरू होता है I भक्तिन का दुर्भाग्य यहां भी उसका साथ नहीं छोड़ता है I बड़ी बेटी किशोरी से युवती होते- होते विधवा हो गई I जेठ और जेठ के बेटों को एक अवसर मिल गया कि अब एक अच्छा समय है, जब लक्ष्मी की संपत्ति को प्राप्त किया जा सकता है I उन्होंने लक्ष्मी की बेटी के पुनः विवाह के लिए अपने तीतरबाज साले को बुला लिया I 'मान ना मान मैं तेरा मेहमान' वाली कहावत को चरितार्थ करने के लिए एक दिन जब लक्ष्मी घर में नहीं थी, तब जबरदस्ती उस तीतरबाज को लक्ष्मी के घर में बंद कर दिया और पंचायत को बुला लिया | पंचायत ने लक्ष्मी और उसकी बेटी के खिलाफ फैसला दिया और कहा कि यह कलयुग है कुछ भी हो सकता है, लेकिन दोनों एक ही कमरे में बंद मिले हैं अतः दोनों का पति- पत्नी होना ही उचित है और यह पंचायत का फैसला उनको मन मसोसकर मानना पड़ा | तीतरबाज ने सब कुछ चौपट कर दिया | खेत खलियान सब कुछ नष्ट हो गए | स्थिति ऐसी आई कि घर का सुख चैन सब कुछ खत्म हो गया | लक्ष्मी के लिए लगान देना मुश्किल हो गया | लक्ष्मी लगान नहीं दे सकी, तब जमीदार ने उसे दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा I इस अपमान को वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और अगले ही दिन कमाई के विचार से वह शहर पहुंच गई I
अब यहां से उसके जीवन का चौथापरिच्छेद शुरू होता है | वह महादेवी वर्मा के यहां सेवक धर्म में दीक्षित होती है | जब वह सेवक धर्म में शामिल होती है, तब वह सच्चाई से महादेवी वर्मा को अपने जीवन की सारी बात बताते हुए निवेदन करती है कि वे उसके लक्ष्मी नाम से ना बुलाए क्योंकि उसका यह जो नाम है समृद्धि सूचक नाम है जो उसके जीवन से कहीं मेल नहीं खाता है I लेखिका ने जब उसके गले में कंठी माला देखी तो उसका नामकरण भक्तिन कर दिया I इस कवित्व हीन नाम पाकर के लक्ष्मी गद्गद् हो गई | भक्तिन की वेशभूषा में बैरागी का मिश्रण देखकर लेखिका को शंका हुई, उन्होंने पूछा-- क्या तुम खाना बनाना जानती हो ? लक्ष्मी ने उत्तर दिया- यह कौन बड़ी बात आई रोटी बनाई लेत है, दाल बनाई लेत है, साग भाजी चौक बनाई लेत है और अगले दिन खाना बनाने गई तो पहले जो अपने नियम पूरे किए, नियमों को देखकर लेखिका को लगने लगा कि इस सेवक के साथ निभाना तो टेढ़ी खीर होगी | भक्तिन का स्वभाव ही ऐसा है कि वह दूसरों को अपने अनुसार बना लेती है लेकिन वह स्वयं के जीवन में कोई बदलाव नहीं लाती है I लेखिका भक्तिन के साथ रहते-रहते देहाती बन गई, लेकिन भक्तिन को शहर की हवा तक नहीं लग पाई I ग्रामीण स्वादिष्ट खाना खाना महादेवी वर्मा को सिखा दिया लेकिन शहर का रसगुल्ला उसके मुंह में प्रवेश नहीं कर सका I न ही वह शहर के बोलचाल के शिष्टाचार जान सकी I उसमें बहुत सारी कमियां है, वह सत्यवादी हरिश्चंद्र तो नहीं बन सकती लेकिन ’’ नरो वा कुंजर वा’ कहने में संकोच नहीं करती | महादेवी वर्मा को जिस बात से क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर से उधर करके बताती है, इस बात को झूठ नहीं मानती I शास्त्र का प्रश्न भक्तिन अपनी सुविधा के अनुसार सुलझा लेती है I महादेवी वर्मा को स्त्रियों का सिर मुड़ाना अच्छा नहीं लगता I भक्तिन ने अपने कार्य को शास्त्र सम्मत बताया और कहा कि शास्त्रों में ऐसा लिखा है I वह मूर्ख है या बुद्धि विद्या का महत्व नहीं जानती, यह भी कहना गलत है क्योंकि महादेवी वर्मा की पढ़ाई लिखाई का मान करके वह अपनी विद्या के अभाव को पूरा कर लेती है I अपनी मालकिन के कार्य पर उसे बहुत गर्व है I वह इस बात को स्पष्ट रूप से कहती है कि उसकी मालकिन जैसा काम कोई नहीं जानता है और इसी से तो बुलाने पर कोई भी साथ देने की हिम्मत नहीं करता है I भक्तिन लेखिका की सहायता नहीं कर सकती पर इसको स्वीकार नहीं करती है I वह दरवाजे पर बैठकर बार-बार काम बताने का आग्रह करती है I पुस्तकों को बांध देती है, कभी अधूरे चित्रों को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और चटाई को आंचल से झाडकर सहायता पहुंचाती है I इससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है I
लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर उसे सर्वाधिक प्रसन्नता होती है I भोजन का आग्रह करने पर भी लेखिका भोजन नहीं कर पाती है, तब भक्ति दही का शरबत, कभी तुलसी की चाय आदि देकर भूख का कष्ट सहन नहीं होने देती I भक्तिन महादेवी वर्मा के सोने के बाद होती है और उठने से पहले उठ जाती है I लेखिका और भक्तिन के बीच सेवक और स्वामी का संबंध है, यह कहना मुश्किल है क्योंकि कोई भी स्वामी अपने मालिक को जब चाहे काम से हटा सकता है, लेकिन यहां स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर भी वह अवज्ञा से हँस देती है I भक्तिन को नौकर कहना असंगत है I वह एक तरह से महादेवी वर्मा के परिवार के सदस्य की तरह ही बन चुकी है I महादेवी वर्मा के परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भक्तिन परिचित है I उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा लेखिका के सम्मान की मात्रा पर निर्भर करती है I भक्तिन जेल के नाम से डरती है I ऊंची दीवारों को देखते ही आंखे मूंद कर बेहोश हो जाती हैI उसकी यह कमजोरी हर जगह प्रसिद्ध है I लेखिका के जेल जाने की संभावना बता कर उसे चिढ़ाते रहते हैं I वह डरती है, पर डर से भी अधिक महत्व लेखिका के साथ जेल जाने का है I लेखिका कहती है कि ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं होता है, लेकिन भक्तिन इस बात को स्वीकार नहीं करती है I वह कहती है कि यह उसके साथ अन्याय होगा I ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन बड़े लाट से लड़ेगी I भक्तिन के आचरण व सेवा भाव को देखकर लेखिका ने संस्मरण के अंत में इतना ही कहा कि भक्तिन की कहानी अधूरी है, उसे खोकर वह पूरा नहीं करना चाहती I By Avadh Sir (ST. MARY'S SCHOOL)
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