अभ्यास पुस्तिका प्रश्न XII - " और फिर मेरी आंखों के सामने इस महान वृक्ष की कलियां टूटने लगती है और वह केवल ठूंठ रह जाता है, मैं सिहर उठता हूं, ना बेटा मैं अपने जीते जी सब न होने दूंगा तुम चिंता ना करो मैं सब समझा दूंगा"
प्रश्न (क) महान वृक्ष और उसकी कलियां से क्या तात्पर्य है उत्तर दादा मूलराज का परिवार महान वृक्ष है और उस परिवार का प्रत्येक सदस्य उस महान वृक्ष की कलियां है |दादा मूलराज के लिए अपने घर के आंगन में खड़ा बरगद का वृक्ष आदर्श है | वह उस महान वृक्ष के समान ही अपने परिवार को मानते हैं और वटवृक्ष की डालियों के समान ही अपने परिवार के सदस्यों को अपने परिवार का प्रमुख हिस्सा समझते हैं | वे नहीं चाहते कि कोई भी सदस्य उनके इस परिवार से अलग हो |
(ख) वक्ता कौन है और वह क्या सोचकर सिहर उठते हैं तथा क्यों? वक्ता दादा मूलराज है | वह अपनी आंखों के सामने अपने परिवार को टूटता और बिखरता देखने की कल्पना मात्र से सिहर उठते हैं | उनके लिए उनका परिवार ही सब कुछ है | अपनी सूझबूझ और बुद्धिमत्ता से वट वृक्ष की तरह एकता के सूत्र मे बाँधा है | वे जानते हैं कि जिस प्रकार पेड़ से टूटने वाली डाली कभी हरी नहीं हो सकती, उसी प्रकार परिवार से अलग होने वाला सदस्य अलग होकर कभी सुखी नहीं रह सकता और वह लाख कोशिश करने के बाद भी परिवार के साथ जुड नहीं पाता है |
(ग) वक्ता ने अपने परिवार को एकजुट रखने में किस प्रकार सफलता प्राप्त की ? दादा मूलराज को जब पता चलता है कि बेला घर से अलग होना चाहती है तो वह अपने परिवार के सभी सदस्यों को अपने पास बुलाते हैं और छोटी बहू बेला के प्रति अपनत्व भाव रखने की सलाह देते हैं | वे उन सब से कहते हैं कि वह संपन्न परिवार की सुशिक्षित युवती है | सब का आदर सत्कार पाती आई है | वह हम सबसे छोटी अवश्य है, किंतु बुद्धि और योग्यता से कहीं अधिक बड़ी है, इसलिए हमें उसकी योग्यताओं का लाभ उठाना चाहिए और उसका आदर करना चाहिए | दादा जी के आदेश पर घर के सभी सदस्य बेला के प्रति आदर भाव रखने लगते हैं | उसका काम भी आपस में बांट लेते हैं | धीरे-धीरे बेला में परिवर्तन आने लगता है और वह इस घर को स्वीकार कर लेती है |
(ध) सूखी डाली एकांकी के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए उत्तर- अभ्यास पुस्तिका page no 50
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें