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संस्कृति क्या है ?

संस्कृति क्या है ? निबंध में श्री रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति और सभ्यता को किस प्रकार परिभाषित किया है उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए   --                                                     उत्तर- रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'संस्कृति के चार अध्याय'से निबंध 'संस्कृति क्या है?' लिया गया है |इस निबंध में श्री रामधारी सिंह दिनकर ने संस्कृति और सभ्यता को परिभाषित किया है | देखने में दोनों शब्द एक दूसरे के समानार्थक प्रतीत होते हैं लेकिन वास्तव में दोनों में काफी अंतर होता है | संस्कृति को हम लक्षणों से तो जान सकते हैं, किंतु उसे परिभाषित नहीं कर सकते | अंग्रेेेेजी में कहावत है कि सभ्यता वह चीज है जो हमारे पास है और संस्कृति वह गुण है जो हमें व्याप्त है | स्पष्ट है कि जो चीजें हमारे पास है, वे सभ्यता की सूचक है और जो हमारे भीतर संस्कारों के रूप में हैंं,  वह संस्कृति है | मोटर,महल, सड़क, हवाई जहाज  ये सारी चीजें सभ्यता के रूप हैं | भोजन करने में, पोशाक पहने में जो कला है, वह संस्कृति की देन है |  सभ्यता की पहचान सुख सुविधा है |  अपनी बात को और अधिक स्पष्ट करने के लिए 'दिनकर' ने दो उदाहरण दिए हैं - छोटा नागपुर  मैं आदिवासी लोग रहते हैं | इन लोगों के पास सभ्यता के बड़े-बड़े उपकरण नहीं है अतः यह लोग सभ्य तो नहीं कहे जा सकते, परंतु इनमें विनय, सदाचार, प्रेम, दया, सच्चाई आदि गुण भरपूर है | येे लोग दूसरों के दुख से  दुखी होते हैं और दूसरों के सुख सेे प्रसन्न रहतेे हैं  | इन लोगों को सुसंस्कृत मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए | दूसरा उदाहरण भारत  के प्राचीन ऋषिगणों का दिया है --ये  लोग जंगलोंं में  फूस की झोपड़ी में वास करते थे | जंगल के जीव से प्रेम करते थे, उनसे दोस्ती करते थे, अपना काम स्वयं अपने हाथों से करते थे, मिट्टी के बर्तन में खाना पकाते थे और पत्तों में खाते थे | यह लक्षण यूरोपीयन परिभाषा के अनुसार सभ्यता के लक्षण नहीं है लेकिन हमारे रिषि मुनि सुसंस्कृत ही नहीं, हमारी संस्कृति के निर्माता थेे |                                                       प्रश्न 2.  सभ्यता और संंस्कृति की  प्रगति एक साथ होती है | दोनों का एक दूसरे पर प्रभाव पड़ता है | स्पष्ट कीजिए.                                                            उत्तर -'दिनकर जी' ने उदाहरण देकर अपनी बात को स्पष्ट किया है | घर बनाना सभ्यता का कार्य होता है, मगर घर का कौन सा नाम पसंद करते हैं, इसका निर्णय हमारी सांस्कृतिक रुचि करती है | संस्कृति की प्रेरणा से हम जैसा घर बनाते हैं फिर वह हमारी सभ्यता का अंग बन जाता है | इस प्रकार संस्कृति का सभ्यता पर प्रभाव का क्रम निरंतर चालू रहता है और उसी संस्कृति के अनुरूप हम उस घर में  सामग्री बसाते हैं | उस घर में हम रंग आदि भी संंस्कृति के अनुरूप ही करवाते हैं |

प्रश्न 3. संस्कृति और प्रकृति के भेद को लेखक श्री रामधारी सिंह दिनकर ने किस प्रकार स्पष्ट किया है  ?रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं कि गुस्सा करना मनुष्य की प्रकृति है और लोभ करना मनुष्य का स्वभाव है | राग, द्वेष, कामवासना,मोह ये सब मनुष्य केे स्वाभाविक गुण है | इन गुणों पर यदि मनुष्य नियंत्रण नहीं रखे तो फिर  आदमी और जानवर में कोई अंतर नहीं रह जाता है | मनुष्य बुद्धिजीवी प्राणी है अतः वह इन आवेगों पर रोक लगाता है और कोशिश करता है कि दुर्गुण ही उसके गुलाम रहे  | दुर्गुुुुुणों पर नियंत्रण रखने वाले लोगोंं संस्कृृति ऊँची  मानी जाती है ! अतः मनुष्य की प्रकृति भी संस्कृति को महान बनाती है |

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