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ICSE SAHITYA SAGAR STORY- SANDEH

संदेह   कहानी के प्रश्न उत्तर अभ्यास पुस्तिका                                            


(1)"मैं चतुर था इतना चतुर जितना मनुष्य को नहीं होना चाहिए क्योंकि मुझे विश्वास हो गया है कि मनुष्य अधिक चतुर ........................................................... और भगवान की दया से वंचित हो जाता है|."                                                


प्रश्न (क )  वक्ता एवं श्रोता कौन है? उसने श्रोता से मन की बात किस प्रकार बताई ?                                                    उत्तर -कथन का वक्ता राम निहाल है और श्रोता श्यामा है | श्यामा के श्रेष्ठ चरित्र की प्रशंसा करते हुए राम निहाल ने अपने मन की बात श्यामा को बताई | उसने कहा कि श्यामा तुम्हारा कठोर व्रत और वैधव्य का आदर्श देखकर उसे विश्वास हुआ कि मनुष्य अपनी सभी इच्छाओं का दमन कर सकता है |तुम्हारा हृदय तो मंदिर के समान पवित्र है जो मुझे कहां प्राप्त होता | साथ ही राम निहाल ने अपने बारे में कहा कि वह नौकरी की तलाश में भारत के अनेक शहरों में भटका परंतु यहां आने पर उसे घर का सा अहसास हुआ |                                                            


( ख ) अपनी महत्वाकांक्षा और उन्नतिशील विचारों के बारे में वक्ता ने क्या कहा.?                                                उत्तर - राम निहाल ने अपनी महत्वाकांक्षा तथा उन्नतिशील विचारों के बारे में श्यामा से कहा कि दोनों ही उसे भटकाते रहे | महत्वाकांक्षा के कारण वह कहीं भी संतुष्ट होकर नहीं सका और इसी कारण एक शहर से दूसरे शहर में नौकरी के लिए भटकता रहा और स्वयं को धोखा देता रहा | उसका गुजारा होता रहा | सोचता था कि एक दिन वह सुखी और संतुष्ट होकर एक जगह रुक जाएगा लेकिन ऐसा कहीं भी नहीं हुआ|                                                                  


प्रश्न( ग) वक्ता ने श्रोता  से किस घटना का उल्लेख किया?                                                                    उत्तर- रामनिहाल ने श्यामा को बताया -- जब वह ब्रजकिशोर के यहां नौकरी करता था तब एक दिन उसके यहां एक संबंधी आए, जिनका नाम मोहन बाबू था और उनकी पत्नी मनोरमा उनके साथ थी | ब्रजकिशोर मोहन बाबू को अदालत में पागल घोषित करवाना चाहते थे जिससे कि वे उनके संपत्ति के प्रबंधक बना दिए जाएं | मोहन बाबू और मनोरमा में वैचारिक मतभेद था | मोहन बाबू मनोरमा पर संदेह करते हैं कि वह ब्रजकिशोर से मिली हुई है और इसी संदेह ने उन्हें विक्षिप्त सा बना दिया |                                                                                                  


प्रश्न ( घ ) क्या आप वक्ता की उपयुक्त कथन से सहमत हैं? कारण सहित उत्तर दीजिए|                                            उत्तर -हां, हम वक्ता के उपर्युक्त कथन से सहमत है क्योंकि अधिक चतुर होना और अधिक महत्वाकांक्षी होना व्यक्ति को स्वयं धोखा देने के समान है | अधिक चतुर बनकर व्यक्ति स्वयं को अभागा बना लेता है और कई बार तो वह अपनों की दया से भी वंचित हो जाता है और साथ में भगवान की दया से भी वंचित हो जाता है इसलिए अधिक चतुर होना और अधिक महत्वाकांक्षी होना, दोनों ही व्यक्ति के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं | इस कहानी में राम निहाल के साथ ऐसा ही हुआ !  उसने स्वयं को अधिक चतुर और महत्वाकांक्षी बना लिया था इस कारण  वह सदैव परेशान ही रहा, कहीं उसे उसके अनुकूल कार्य प्राप्त नहीं हो सका और भटकता रहा |                                             


(  by -- AVADH )


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