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संस्कार और भावना

संस्कार और भावना' एकांकी का उद्देश्य मानव की विचारधारा में परिवर्तन लाना है। रूढ़ियों को मानना तभी तक उचित है जब तक वह बंधन न लगे वरना इनका टूट जाना ही उचित है। संस्कारों को अवश्य मानना चाहिए लेकिन उसका दास नहीं बनना चाहिए। परिवर्तन संसार का नियम है और उसे पुराने की दुहाई देकर गलत नहीं ठहराना नहीं चाहिए।
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ICSE हिंदी- एकांकी संचय. एकांकी ’दीपदान’ एकांकीकार -डॉ रामकुमार वर्मा.

ICSE हिंदी- एकांकी संचय.   एकांकी ’दीपदान’  एकांकीकार -डॉ रामकुमार वर्मा.                                                  इस एकांकी को पढ़ने से पहले हमें मेवाड़ के इतिहास को थोड़ा जानना जरूरी हो जाता है | मेवाड़ में सिसोदिया वंश की स्थापना  राणा हमीर सिंह ने की थी और इसी सिसोदिया वंश में पैदा हुए थे -राणा सांगा | राणा सांगा राणा रायमल के पुत्र थे | राणा सांगा के तीन पुत्र थे --रतन सिंह, विक्रमादित्य और उदय सिंह | राणा सांगा के निधन के बाद रतन सिंह मेवाड़ के शासक बने, जो 1528 से लेकर के 1531 तक मेवाड़ के शासक रहे | रतन सिंह की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य मेवाड़ के शासक बनते हैं | 1531 दे 1536 तक मेवाड़ पर शासन रहते हैं | 1536 में एक घटना घटी, जिसका उल्लेख करना जरूरी है | राणा सांगा की मृत्यु के बाद कुछ दिनों बाद रानी कर्णावती जौहर कर लेती है...

DEEPDAN EXTRACT IX AND X ANSWERS BY - AVADH BIHARI

  (IX)     "चली गई ऐसा मैं नहीं सुन सकूंगी | जो मुझे करना है वह सामली  सुन भी न सकेगी |भवानी तूने मेरे को कैसा कर दिया ?  मुझे बल दो कि मैं राजवंश की रक्षा में अपना रक्त दे सकूं"                                                                                                       (क) उपर्युक्त कथन किसने और किस संदर्भ में कहा है ?उत्तर-  उपर्युक्त कथन पन्नाधाय ने स्वयं सेे कहा है | यह पन्ना का स्वगत कथन है |  सामली के पूछने पर पन्नाधाय उदय सिंह के स्थान पर अपने पुत्र चंदन को बनवीर की तलवार नीचे सुला देने की बात कहती है , जिसे सामली सुन भी नहीं पाती है | इसी संदर्भ में पन्ना यह कथन कहती है |                              ...

उद् यमी नर

प्रश्‍न: आपके अनुसार स्वर्ग से क्या तात्पर्य है ? धरती को स्वर्ग कौन और कैसे बना सकता है ? उत्तर-उद्‌यमी नर कविता में स्वर्ग से तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहाँ सभी को समान रूप से अपने परिश्रम का फल मिलता है, जहाँ हर तरह की सुख-सुविधाएँ हों। जहाँ मानव शांतिपूर्वक जीवन यापन करे। धरती को स्वर्ग मानव अपनी मेहनत द्‌वारा बना सकता है। जिस तरह से वैज्ञानिकों ने अपनी मेहनत के बल पर नए-नए अनुसंधानों की खोज की और हम मानवों को सुख-सुविधाएँ प्रदान की, ठीक इसी तरह से हम भी पृथ्‍वी को स्वर्ग बनाने में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं।यदि समाज में शोषण समाप्त होकर समानता का आदर्श स्थापित हो तो धरती स्वर्ग से भी सुन्दर बन  सकती है। प्रश्‍न – ईश्‍वर द्‌वारा छिपाए तत्‍व को कौन, किस प्रकार पा सकता है ? प्रकृति किससे हारती है ? उत्तर-ईश्‍वर द्‌वारा छिपाए तत्‍व को कर्मशील प्राणी अपने कर्मों, परिश्रम एवं संघर्षों के द्‌वारा पा सकता है।ये उन लोगों को प्राप्त नहीं हो सकते जो मेहनत नहीं करना चाहते।  अपनी भुजाओं की शक्ति से मनुष्य ने पृथ्वी में छिपे अपने सुख के सभी तत्वों को खोज निकाला है। कवि के शब्दों म...

पुस्तकालय का महत्त्व

पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं। वास्तव में यह सत्य भी है क्योंकि पुस्तकें ही हमें अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाकर हमारे जीवन का उद्धार करती हैं। एक  पुस्तक  जिसमें ज्ञान की अनेक बातें होती हैं, उसे पढ़कर हमेशा हम कुछ ना कुछ नया अवश्य सीखते हैं और अपने जीवन में ज्ञान अर्जित करते रहते हैं। अनंत विषयों पर अनंत पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिसे पढ़कर मनुष्य ज्ञानी बन सकता है परंतु हर पुस्तक को खरीद पाना संभव नहीं है इसलिए पुस्तकालय बनाए जाते हैं। पुस्तकालय वह स्थान होता है जहां सैकड़ों विषयों की सैकड़ों  पुस्तक  रखी होती हैं। कोई भी व्यक्ति पुस्तकालय में आकर अपनी मनपसंद पुस्तकों का अध्ययन कर सकता है। इसमें लेश मात्र भी संदेह नहीं है कि पुस्तकालय ज्ञान का वह मंदिर है जहां जाने पर आप अनंत ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं। मनुष्य अपने मन में उठे प्रश्नों का तर्कपूर्ण उत्तर इस ज्ञान के मंदिर में आकर प्राप्त कर सकता है। पुस्तकालय में रखी पुस्तकें हमारे सभी प्रश्नों का ना केवल तर्कपूर्ण उत्तर देती है बल्कि इसके अतिरिक्त हमारे ज्ञान को भी बढ़ाती हैं। पुस्तकालय में प्रवेश करने के पश्चात...

प्रमुख बिन्दु... 4 भीड़ मे खोया आदमी

प्रमुख बिन्दु... 3 भीड़ मे खोया आदमी